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पंचतंत्र की कहानी - लालची ब्राह्मण | Hindi Story City | सारांश - हमें सदैव अपने विवेक से काम लेना चाहिए और किसी भी प्रकार के लालच में नहीं आना चाहिए।

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पंचतंत्र की कहानी - लालची ब्राह्मण


किसी जंगल में एक शेर रहता था। शेर की उम्र काफी बढ़ चुकी थी जिसकी वजह से उसे शिकार करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। बढ़ती उम्र और शिकार ना मिलने के कारण वह दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। एक दिन शेर को जंगल में चमकती हुई चीज मिली जिसे देखकर वह भौंचक्का रह गया।

शेर ने सोचा “अरे ये क्या है जो इतना चमक रहा है? मैंने पहले तो जंगल में ऐसी कोई चीज नहीं देखी?!" शेर उस चमकती हुई चीज को उठा लेता है और उसे अपने पास रख लेता है। वह सोचता है, "शायद यह आगे चलकर मेरे काम आ जाये। अगर वह कभी किसी इंसान को इसका लालच दूंगा तो वह मेरे पास ज़रूर आएगा। कम से कम मेरे भोजन का इंतजाम तो हो जाएगा।"


शेर सोने के कड़े को अपने मुंह में दबाए चल रहा था कि उसे एक आहट सुनाई देती है। वह उस आहट को बड़े ही ध्यान से सुनता है और फिर उसी दिशा में चला जाता है जहां से आवाज आ रही थी। शेर देखता है कि एक ब्राह्मण सामने से आ रहा है और फिर वह उस ब्राह्मण की ताक में झाड़ियों में छुप कर बैठ जाता है। जैसे ही ब्राह्मण शेर के सामने से गुज़रता है तो शेर उसे आवाज देता है |

ब्राह्मण रुक जाता है और अपनी नजरें चारों तरफ दौड़ाता है लेकिन उसे कुछ नजर नहीं आता। ब्राह्मण कहता है, "भाई, तुम कौन हो जो इस तरह से मुझे आवाज लगा रहे हो?” शेर झाड़ियों से बाहर आता है और ब्राह्मण शेर को देखकर डर जाता है। शेर कहता है, “मैं यहाँ से गुज़र रहा था कि मुझे ये सोने का कड़ा मिला। क्योंकि ये मेरे किसी काम का नहीं है, इसलिए मैं इसे किसी और को देना चाहता हूँ।"

यह सुनकर ब्राह्मण ने कहा, "तुम तो एक जानवर हो और मुझे मार कर खा जाओगे।" शेर ने जवाब दिया, "मुझसे डरने की आवश्यकता नहीं है। मैं बहुत बूढ़ा हो चूका हूँ। मेरे दांत टूट चुके हैं और नाख़ून भी घिस गए हैं।"

शेर ब्राह्मण के मन की बात भांप जाता है और उसे लालच देते हुए कहता है,“डरने की ज़रुरत नहीं है। लो, ये कड़ा तुम ले जाओ और इसे रख लो। कम से कम तुम्हारे काम तो आएगा।"

ब्राह्मण ने शेर की बात का कोई जवाब नहीं दिया और डरकर अपनी जगह खड़ा रहा। शेर ने सोचा, "यह ब्राह्मण तो टस से मस हो ही नहीं रहा है। मैं इसे कैसे लालच दूं?"

शेर फिर से ब्राह्मण को झांसे में लाने की कोशिश करता है और कहता है, “सुनो। ये असली सोने का कड़ा है। अगर तुम्हे नहीं लेना है तो कोई बात नहीं। मैं इसे किसी और को दे दूंगा। मैं चलता हूँ।"

ब्राह्मण सोचता है, “अगर इस शेर को मुझे बेवक़ूफ़ बना कर खाना ही होता तो मुझ पर ये कब का हमला कर चुका होता। अब तक इसने हमला नहीं किया है। शायद ये सच बोल रहा है। मैं बेकार में ही इससे डर रहा हूँ।"

ऐसा सोचते हुए ब्राह्मण उस कड़े के लालच में शेर के पास चला जाता है। जैसे ही वह शेर के पास पहुँचता है, शेर ब्राह्मण को मार कर खा जाता है और लालच के कारण ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती है।


सारांश - हमें सदैव अपने विवेक से काम लेना चाहिए और किसी भी प्रकार के लालच में नहीं आना चाहिए।

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